सोहागपुर में सैकड़ों वर्षो से भाई दूज की रात तांत्रिकों का मेला लगता आया है भगवान शिव के गण भीलट देव और शिष्या गांगो माई की पूजा का पर्व मढ़ई मेला मंगलवार को यम द्वितीया अर्थात भाईदूज की रात को मनाया गया। इस दौरान दूर-दूर से करीब डेढ़ सौ तांत्रिक पडिय़ारों की भूमिका में सोहागपुर पहुंचे तथा पडिय़ारों ने माई तथा देव का पूजन में शामिल होते हैं। इस मेले में तांत्रिकों की देवी गांगो माई की पूजा की जाती है। मेले में तांत्रिक अपने आराध्य देव के निशान के रूप में मोर पंखों से बनी ढाल बनाकर लेकर आते हैं और गांगो माई की परिक्रमा लगाते हैं। आयोजन समिति से जुड़े लोगों जानकारी देते हुए बताया कि यह परंपरा पिछले कितने वर्षों से चली आ रही है उन्हें नहीं पता वह तो अपने पूर्वजों की परंपरा को ही आगे बढ़ा रहे हैं फिर भी लगभग यह परंपरा 400-500 वर्ष पुरानी तो होगी ही।
इस वर्ष मेले में लगभग 100 से डेढ़ सौ तांत्रिक शामिल हुए जैसे ही भिलट देव की ढाल जो कि एक लंबे बांस पर लोटे से बनाई गई थी उसके आने के बाद ही मेले की शुरुआत हुई भिलट देव की ढाल के बाद ही अन्य देवताओं के नाम की ढालो ने गांगो माई की परिक्रमा की। मेले में गांगो माई की पूजन के दौरान भभूति लेने के लिए पूरे क्षेत्र के हजारों नागरिक मेला स्थल पर पहुंचे। यह मानता है कि यदि भभूति खाने के बाद भूत प्रेत की बाधाओं से मुक्ति मिलती है। किसी भी प्रकार का डर मन से दूर हो जाता है। इस मेले में आने वाली ढालो को बीड़ा लेने के बाद ही परिक्रमा स्थल पर जाने की अनुमति मिलती है। यह वीड़ा बरसों से नगर के प्रतिष्ठित मालवीय परिवार के द्वारा दिया जाता है। क्षेत्र में एक किवदंती यह भी है कि गांगो माई एक बहुत बड़ी जादूगरनी थी जिसे भिलट देव बंगाल से जीतकर सोहागपुर लाए थे तभी से इस तांत्रिकों के चंडी मेले का आयोजन किया जाता है।
यह है परंपरा से जुड़ी कथा
प्राचीन कथा अनुसार प्रतिवर्ष भाइदूज पर ढाल लेकर तांत्रिक गांगो माई के स्थान पर पहुंचते हैं। जहां देव का निशान भी लाया जाता है। मूल कहानी के पीछे वृतांत है कि शिवगण भीलट देव तथा गांगो माई दोनों तंत्र विद्या में माहिर थे। एक समय दोनों में शक्ति के प्रदर्शन को लेकर आमना सामना हो गया। दोनों को लड़ते देख भगवान शिव ने उन्हें समझाया तथा कहा कि दोनों के गुरू स्वयं भगवान शिव हैं अत: वे न झगड़ें तथा आशीर्वाद दिया कि तंत्र की देवी के रूप में गांगो माई की पूजा कार्तिक अमावस्या पश्चात पडऩे वाली दूज पर विशेष रूप से की जाएगी।
बांस पर बनाए जाते हैं ढाल और निशान
जानकारी अनुसार बांस पर मोर पंखों को सजाकर ढाल बनाई जाती है जिसे तांत्रिक अपने शरीर पर लेकर चलते हैं तथा अंत में गांगो माई के स्थान पर पहुंचकर परिक्रमा करते हैं। वहीं देव का निशान भी बांस पर लोटा बांधकर बनाया जाता है। गांगो देवी की मूर्ति मिट्टी तथा चमड़े से बनाई जाती है जिसके हाथ पर मुर्गी का अंडा रखा जाता है तथा भक्त पूरे वर्ष भर भूत-प्रेतादि बाहरी बाधाओं तथा शक्तियों से मुक्त रखने का आशीर्वाद मांगते हैं।
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